September 16, 2024

नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च के 24वें स्थापना दिवस पर अंटार्कटिका में स्थापित किया गया भारतीय डाकघर की तीसरी शाखा…

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नई दिल्ली। फेसबुक और वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया के जमाने में एक-दूसरे को चिट्ठियां लिखना लगभग बंद हो चुका है, लेकिन बर्फीले अंटार्कटिका में रिसर्च मिशन में जुटी भारतीय वैज्ञानिकों की टीम में आज भी चिट्ठियों का क्रेज है। वे चिट्ठियों को यादों का हिस्सा बनाने और उन पर अंटार्कटिका का पोस्टल स्टैम्प पाने के लिए उत्साहित रहते हैं।नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च के 24वें स्थापना दिवस पर अंटार्कटिका में भारतीय डाकघर  की नई शाखा खोली गई। वहां भारतीय डाकघर की यह तीसरी शाखा है। बर्फीले महाद्वीप में देश के वैज्ञानिकों के लिए नई सुविधा संदेशे आते हैं। अंटार्कटिका में तीसरा भारतीय डाकघर खोला गया है।

हाथ से लिखी चिट्ठियों के शब्दों में होती है भावनाएं

वीरान अंटार्कटिका में भारत के करीब 100 वैज्ञानिक काम करते हैं। जिनका कहना है कि हाथ से लिखी चिट्ठियों का आज भी कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि इनके शब्दों में भावनाएं होती हैं। अंटार्कटिका के ऑपरेशंस में जुड़े ग्रुप डायरेक्टर शैलेंद्र सैनी का कहना है कि हमारे वैज्ञानिक सोशल मीडिया से जुड़े तो हैं, फिर भी वे अपने परिवार के साथ कम रफ्तार वाले इस माध्यम (चिट्ठियों) के जरिए जुड़े रहना पसंद करते हैं। हम साल में एक बार सारी चिट्ठियां एकत्र करेंगे और उन्हें गोवा में अपने मुख्यालय को भेजेंगे।


अंटार्कटिका की पहली शाखा

बर्फीले महाद्वीप में नए डाकघर का पिनकोड ‘एमएच-1718’ रखा गया है। जहां पहला डाकघर 1984 में खोला गया जिसका नाम ‘दक्षिण गंगोत्री’ रखा गया था। यह देश का पहला वैज्ञानिक बेस था। एक साल में ही इस डाकघर में करीब 10,000 चिट्ठियों का आना-जाना हुआ। दक्षिण गंगोत्री को 1988-89 में बर्फ में डूबने के बाद निष्क्रिय कर दिया गया। इसी के ही साथ अंटार्कटिका में 1990 में डाकघर की दूसरी शाखा ‘मैत्री’ खोली गई।

डाकघर को खोलने का उद्देश्य

अंटार्कटिका में नए पोस्ट ऑफिस का उद्घाटन करते हुए वैज्ञानिकों से अपील की गयी। कि वे अपने परिवार और दोस्तों को चिट्ठियां लिखना जारी रखें। क्योकि ई-प्रारूप कुछ समय बाद मिट जाते हैं, लेकिन चिट्ठियां हमेशा अनमोल निशानियां बनी रहेंगी। इसको कई साल बाद इन्हें देखकर आप पुरानी यादों को हरा-भरा महसूस कर सकेंगे। जिसने दक्षिणी ध्रुव के पास अंटार्कटिका के बर्फीले महाद्वीप में अपना तीसरा डाकघर खोला। भारत बर्फीले, निर्जन इलाकों में अनुसंधान मिशन चलाता है जहां विभिन्न महीनों के दौरान 50-100 वैज्ञानिक काम करते हैं। केके शर्मा द्वारा वेब लिंक के माध्यम से भारती स्टेशन, अंटार्कटिका में नए डाकघर का उद्घाटन किया गया।

स्थापना के लिए 5 अप्रैल को ही क्यों चुना गया ?

विभाग ने इससे पहले 1984 में दक्षिण गंगोत्री स्टेशन पर और 1990 में मैत्री स्टेशन पर एक डाकघर स्थापित किया था। यह अंटार्कटिका में स्थापित होने वाला तीसरा डाकघर है। लेकिन 5 अप्रैल को इसलिए चुना गया क्योंकि यह राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र, गोवा का स्थापना दिवस मनाया जाता है । वर्तमान में 24वां स्थापना दिवस मनाया गया।

जिसके लिए कहा गया कि “यह एक प्रतीकात्मक लेकिन मील का पत्थर प्रयास है। हमारे वैज्ञानिकों के पास व्हाट्सएप सहित संचार के आधुनिक साधनों तक पहुंच है, भले ही धीमी गति से, इसलिए वे अपने परिवारों के साथ संपर्क में रहते हैं। लेकिन ‘अंटार्कटिका’ अंकित पत्र प्राप्त करने का स्मारिका मूल्य – ऐसे युग में जब लोगों ने पत्र लिखना पूरी तरह से बंद कर दिया है – हम वर्ष में एक बार पत्र एकत्र करेंगे और उन्हें गोवा में हमारे मुख्यालय में भेजेंगे जहां वे होंगे वैज्ञानिकों के परिवारों को मेल किया गया।” इस अवसर पर भारती स्टेशन पर एक पोस्टकार्ड जारी किया गया। डाक विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा, अंटार्कटिका और गोवा में काम करने वाले कई वैज्ञानिकों ने वर्चुअल उपस्थिति से इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिसमें एनसीपीओआर के निदेशक थमन मेलोथ और मैत्री और भारती स्टेशनों के टीम लीडर शामिल थे।

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“दुनिया के सबसे दूरदराज के कोने -कोने में भी सेवा देने के लिए डाक बिरादरी की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है”। उन्होंने इस वर्चुअल लॉन्च को संभव बनाने में शामिल सभी लोगों के प्रयासों की सराहना की और प्रियजनों के साथ पत्रों के आदान-प्रदान के माध्यम से सार्थक कनेक्शन की सुविधा प्रदान करने के लिए भारतीय शाखा डाकघर में तैनात पोस्टमास्टर पर विश्वास व्यक्त किया।

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