श्री रावतपुरा सरकार विश्वविद्यालय में आयोजित किया ‘स्वामी आत्मानंद का सामाजिक अवदान’ का चर्चा सत्र…

रायपुर।। श्री रावतपुरा सरकार विश्वविद्यालय में 7 अक्टूबर को स्वामी आत्मानंद की जयंती (06 अक्टूबर) के अवसर पर समाज विज्ञान संकाय द्वारा चर्चा सत्र का आयोजित किया गया। इस आयोजन में समाज विज्ञान सकय एवं कला संकाय के शिक्षकों, विद्यार्थी एवं शोधार्थियों ने हिस्सा ने हिस्सा लिया। ‘स्वामी आत्मानंद का सामाजिक अवदान’ विषय पर आयोजित चर्चा सत्र में स्वामी आत्मानंद का जीवन परिचय कराते हुये राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर योगमय प्रधान ने बताया कि उनका जीवन गांधी और विनोबा भावे जैसे सामाजिक चिंतकों के बीच बिता लेकिन आगे चलकर वह स्वामी विवेकानन्द के विचारों से वह प्रभावित हुये और उन्हीं के कदमों पर चलते हुये उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना बहुतमूल्य योगदान किया । छत्तीसगढ़ में उन्होंने किन विषम परिस्थितियों के बावजूद आदिवासियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर काम किया। वह जिस परिवेश से आते थे। उनके लिए बहुत से अवसर थे जहाँ वह अपना जीवन सामान्य व्यक्तियों कि तरह जी सकते थे। आगे उन्होंने बताया कि कैसे वह समाज कि परिस्थियों को देखते हुये अपनी आई ए एस कि परीक्षा छोड़ कर सामाजिक सेवा और रामकृष्ण परमहंस के विचार को आगे बढ़ाने का निश्चय लिया।
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छत्तीसगढ़ सरकार ने आज उनके नाम पर तमाम विश्वविद्यालय और स्कूलों का निर्माण किया जहाँ सभी वर्गों के लिए शिक्षा को प्राप्त करने का अवसर मिल पा रहा है। स्वामी आत्मानन्द का जन्म 06 अक्टूबर 1929 को छत्तीसगढ़ के बरबन्दा ग्राम में हुआ और 27 अगस्त 1989 को उनकी मृत्यु हो गई। यह हमारे समाज की विडंबना है कि उन्हें अन्य सामाजिक चिंतकों के तौर पर नहीं देखा जाता। नहीं उनके काम का आंकलन ठीक से किया जाता है।
डॉ. आरती उपाध्याय ने बताया कि स्वामी आत्मानन्द का सामाजिक सेवा क्षेत्र बहुत ही विस्तृत रहा है। उन्होंने हर वर्ग के समाज के लिए अपनी सेवायें दी। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में उनका योगदान अनुकरणीय रहा है। आज उन्हें उस तरह से याद नहीं जाता जिस तरह से विस्तृत उनका कार्य क्षेत्र रहा है।
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संवाद चर्चा सत्र में डॉ. नरेश गौतम ने अपने वक्तव्य में बताया कि हर सामाजिक चिंतक के दो पहलू होते हैं। जहाँ एक ओर वह समाज के लिए सार्थक तौर पर कार्य कर रहा होता है। लेकिन कई बार उनके नकारात्मक पहलू भी उसके काम में छुपे होते हैं। स्वामी ने सामाजिक सेवा के माध्यम से हिंदुत्व को आगे ले जाने का भी कार्य किया किया। यह बिल्कुल उसी तरह से है जैसे स्वामी विवेकानन्द को उनके हिंदुत्ववादी नजरिये के लिए याद किया जाता है। या उन्हें उसी तरह से व्याख्यायित किया गया है। लेकिन उनके द्वारा समाज के लिए समीक्षात्मक पहलुओं को कभी नहीं देखा गया। उन्होंने धर्म नहीं रोटी कि भारत को जरूरत है। इस पहलू पर कोई बात नहीं करता। उसी तरह से स्वामी ने शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम तो किया लेकिन उसकी जड़ें हिंदुत्व के विचार के फैल रही थी।
चर्चा संवाद में समाज विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता डॉ. अवधेश्वरी भगत ने सभी को धन्यवाद ज्ञापन दिया साथ ही छात्रों को संबोधित करते हुये बताया कि हमारे सामाजिक चिंतकों से हमें सकारात्मक ऊर्जा और उनके विचारों से सकारात्मक चिंतन करने कि आवश्यकता है। इतिहास हमें हमारी गलतियों को सुधारने का मौका देता है। जो हमने बार बार सीखना चाहिए। और उससे प्राप्त शिक्षा के माध्यम से समाज, परिवार, और व्यक्ति को आगे बढ़ाने में मदत करनी चाहिए।
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