भारत के 5 और भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा, जानिए कैसे मिलता है यह स्टेटस…

नई दिल्ली। शास्त्रीय भाषाएं स्वतंत्र परंपराओं और समृद्ध साहित्यिक इतिहास वाली प्राचीन भाषाएं हैं जो विभिन्न साहित्यिक शैलियों और दार्शनिक ग्रंथों को प्रभावित करती रहती हैं। मंत्रिमंडल की नवीनतम मंजूरी के साथ, भारत में मान्यता प्राप्त शास्त्रीय भाषाओं की कुल संख्या 5 और भाषा जुड़ने के साथ अब 11 हो गई है। इससे पहले तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को पहले ही शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त था। केंद्र ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार भारत की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है।
किस आधार पर मिलता है दर्जा?
सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को ‘शास्त्रीय भाषा’ नामक एक नई श्रेणी बनाई थी। इसने तमिल को उसके एक हज़ार साल से ज़्यादा पुराने इतिहास, मूल्यवान माने जाने वाले ग्रंथों और साहित्य तथा मौलिकता के आधार पर शास्त्रीय भाषा घोषित किया। नवंबर 2004 में, साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के लिए प्रस्तावित भाषाओं की पात्रता की जांच करने के लिए एक भाषा विशेषज्ञ समिति (LEC) का गठन किया गया।
क्या है फायदा शास्त्रीय दर्जा मिलने का ?
सरकार की तरफ से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील के पत्थर का सार है।
अगले वर्ष, संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया। धीरे-धीरे, 2008 में तेलुगु और कन्नड़, और 2013 और 2014 में मलयालम और ओडिया भी इस सूची में शामिल हो गए। इसके लिए संबंधित भाषा वाले राज्यों की तरफ से प्रस्ताव भेजना होता है। इसके बाद साहित्य कला अकादमी के तहत भाषा विशेषज्ञ समिति की तरफ से प्रस्ताव पर विचार के बाद मान्यता देने की प्रक्रिया पूरी होती है।
संस्कृत भाषा के लिए है 3 सेंट्रल यूनिवर्सिटी
शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 2020 में संस्कृत भाषा के लिए तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गये। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, शोध को बढ़ावा देने और यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण के लिए, मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए।
इन पहलों के अलावा, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार स्थापित किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषा के प्रचार के लिए केंद्र सहित शास्त्रीय भाषाओं को लाभ प्रदान करता है।
शास्त्रीय भाषाओ के मिलने का क्रम
वर्ष 2004 में, भारत सरकार ने उनकी प्राचीन विरासत को स्वीकार करने और संरक्षित करने के लिये भाषाओं को “शास्त्रीय भाषा” के रूप में नामित करना शुरू किया। भारत की 11 शास्त्रीय भाषाएँ देश के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास की संरक्षक हैं तथा अपने समुदायों के लिये महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धि का प्रतीक हैं।
1. तमिल 2004
2.संस्कृत 2005
3.तेलुगु 2008
4.कन्नड़ 2008
5. मलयालम 2013
6. ओड़िया 2014
तमिल को मिला सबसे पहले शास्त्रीय भाषा का दर्जा
भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को शास्त्रीय भाषा के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया, जिसके तहत तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया। उसके बाद संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया। इस प्रस्ताव को भाषा विज्ञान विशेषज्ञ समिति (एलईसी) को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की। महाराष्ट्र में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और यह राज्य में एक बड़ा चुनावी मुद्दा था। जिसमें कहा गया कि इस बीच बिहार, असम और पश्चिम बंगाल से भी पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के प्रस्ताव प्राप्त हुए।