September 17, 2024

होलिका दहन का हिन्दू धर्म में क्या है महत्त्व ?…

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भारत में होलिका दहन का धर्म और रीती-रिवाज को लेकर हिन्दू धर्म में अनूठी श्रद्धा है। रंगों का उत्सव होली पर्व के एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। होलिका को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन की विधिवत पूजा करने से घर में नकरात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। साथ ही धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है। इतना ही नहीं होलिका दहन की पूजा विधिवत के साथ करने से परिवार के सदस्यों को बीमारियों से मुक्ति मिलती है।

होलिका दहन के पीछे की कथा क्या है ?

होलिका दहन से जुड़ी एक कथा काफी प्रचलित हैइस कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भाई के साथ मिलकर प्रहलाद को मारने की कोशिश की थी लेकिन प्रहलाद के बदले होलिका ही उस आग में जल गयी। यह कथा तो हर कोई जानता है लेकिन जानिए आखिर कैसे होलिका जो एक राक्षसी थी उसे देवी की उपाधि मिली और उन्हें पूजा जाने लगा।


हिरण्यकश्यप नाम का राक्षस भगवान विष्णु (भगवान विष्णु के मंत्र) से घृणा करता था क्योंकि श्री हरि विष्णु के वाराह अवतार द्वारा उसके भाई का वध हुआ था। इसी कारण उसने तपस्या कर ब्रह्म देव से दिव्य वरदान मांगा और अपने राज्य में विष्णु पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया।
वह खुद को भगवान मानने लगा था। विष्णु पूजन करने वाले लोगों पर उसका अत्याचार बढ़ने लगा था। वहीं खुद हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। यह बात जब दुराचारी को पता चली तो उसने प्रहलाद को मारने के कई प्रयास किये।

हर प्रयास में विफल होने के बाद जब हिरन्यकश्यप हार गया तब उसने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया और प्रहलाद को मारने की योजना बनाई। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी और इसी के बल पर वह प्रहलाद को चिता पर लेकर बैठ गई।
विष्णु भक्त की भक्ति रंग लाइ और प्रहलाद अग्नि में से सुरक्षित बाहर आ गए पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका अग्नि में जलकर ख़ाक हो गई। इसके बाद से ही होलिका दहन मनाने की परंपरा शुरू हुई।

आखिर होलिका को देवी क्यों माना जाता है।

होलिका एक राक्षसी थी और उसने अपने ही भतीजे का अहित करने की कोशिश की थी। लेकिन होलिका एक देवी थी जो ऋषि द्वारा दिए गए श्राप को भुगत रही थी। मृत्यु के कारण उस जन्म का उसका श्राप पूर्ण हो गया और अग्नि में जलने के कारण वह शुद्ध हो गई। इसी कारण से होलिका को राक्षसी होने के बाद भी होलिका दहन वाले दिन देवी रूप में पूजा जाता है।

होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण

होली वसंत के मौसम में खेली जाती है, जो सर्दी के अंत और गृष्म ऋतू के बीच की अवधि होती है। ऐसे में पुराने समय में सर्दियों के दौरान लोग नियमित रूप से स्नान नहीं करते थे। जिसके कारण त्वचा रोग का खतरा बढ़ जाता था। इसलिए होलिका दहन के पीछे छिपा वैज्ञानिक कारण यह है कि इस पर्व के दौरान जलाई गई लकड़ियों से वातावरण में फैले हुए खतरनाक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और होलिका की परिक्रमा करने से शरीर पर जमे हुए कीटाणु भी अलाव की गर्मी से मर जाते हैं। वहीं देश के कुछ हिस्सों में होलिका दहन के बाद लोग अपने माथे और शरीर पर होलिका की राख लगाते हैं, जिसे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है।

कब और कैसे मनाई जाती है होलिका?

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन गांव या मौहल्ले के किसी खुली जगह पर किया जाता है। खास लकड़ियों से तैयार की गई चिता पर गोबर से बने होलिका और भक्त प्रहलाद को स्थापित किया जाता है, जिसे गुलारी या बड़कुल्ला के नाम से जाना जाता है। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है और चार मालाएं जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और गोबर से बने खिलौनों से बनाई जाती है, उन्हें अलग से रख लिया जाता है। इस प्रकार होलिका दहन के दुसरे दिन रंग – गुलाल के साथ होली का भी त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।

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