October 14, 2024

न्यूरोप्लास्टिसिटी से दिमाग को बनाये स्वस्थ…

0

तेज़ी से बदलती दुनिया और लगातार आगे बढ़ती टेक्नोलॉजी, जिससे रोज़मर्रा के जीवन में बदलाव आते जा रहे है। इसके साथ ही हमारा दिमाग़ इन सब कामों के लिए नहीं बना था, जो आज हम करते हैं। फिर भी हम इस आधुनिक दुनिया में अच्छे से ढल गए हैं और लगातार आ रहे बदलावों के हिसाब से ख़ुद को बदलते भी जा रहे हैं । ये सब संभव हो पाया है हमारे ब्रेन यानी मस्तिष्क के कारण । एक ऐसा अंग जिसमें ख़ुद को ढालने, सिखाने और विकसित करने की ज़बरदस्त क्षमता है। जिसको मस्तिष्क कहा जाता है ।

न्यूरोप्लास्टिसिटी क्या है ?

प्लास्टिसिटी हमारे दिमाग़ की उस क्षमता को कहा जाता है, जिसमें वह बाहर से आने वाली सूचनाओं के आधार पर ख़ुद में बदलाव लाता है।न्यूरोप्लास्टिसिटी वास्तव में हमारे दिमाग़ में मौजूद न्यूरॉन, जिन्हें नर्व सेल भी कहा जाता है, उनमें बनने और बदलने वाले कनेक्शन को कहा जाता है। मस्तिष्क में न्यूरॉन्स पर्यावरण आपकी सोच और व्यवहार के अनुसार लगातार अपने कनेक्शन को कार्यात्मक रूप से और शारीरिक रूप से पुनर्गठित कर रहे हैं। इस क्षमता को न्यूरोप्लास्टिसिटी के रूप में जाना जाता है। न्यूरोप्लास्टिसिटी के माध्यम से मस्तिष्क के तंत्रिका कोशिकाएं मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में चोट के लिए क्षतिपूर्ति कर सकती हैं और एक व्यक्ति को स्ट्रोक, जन्म असामान्यताओं से ठीक होने में सक्षम बनाती हैं। यह ऑटिज़्म, एडीडी, सीखने की अक्षमता के इलाज में भी फायदेमंद है और जुनूनी बाध्यकारी विकारों का प्रबंधन करने में मदद करता है।


मस्तिष्क में हुए नुक़सान को कैसे कम करे ?

कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो कुछ ही हफ़्तों में तनाव को कम करती हैं और न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देती हैं । न्यूरोप्लास्टिसिटी बढ़ने से डिमेंशिया जैसी बीमारियों को टाला जा सकता है और यहां तक कि मनोवैज्ञानिक सदमे से मस्तिष्क को पहुंचे नुक़सान को कम किया जा सकता है। हमारा मस्तिष्क एक न्यूरल वायरिंग सिस्टम है। दिमाग़ में अरबों न्यूरॉन होते हैं। हमारे सेंसरी ऑर्गन (इंद्रियां) जैसे आंख, कान, नाक, मुंह और त्वचा बाहरी सूचनाओं को दिमाग़ तक ले जाते हैं। ये सूचनाएं न्यूरॉन के बीच कनेक्शन बनने से स्टोर होती हैं।

जब हम पैदा होते हैं तो इन न्यूरॉन में बहुत कम कनेक्शन होते हैं। रिफ़्लेक्स वाले कनेक्शन पहले से होते हैं, जैसे कोई बच्चा गर्म चीज़ के संपर्क में आने पर हाथ पीछे कर लेगा। लेकिन सांप को वह मुंह में डाल लेगा क्योंकि उसके दिमाग़ में ऐसे कनेक्शन नहीं बने हैं कि सांप खतरनाक हो सकता है। फिर वह सीखता चला जाता है और न्यूरल कनेक्शन बनते चलते हैं । नए अनुभवों पर ये कनेक्शन बदलते भी है । इसी पूरी प्रक्रिया को न्यूरोप्लास्टिसिटी कहा जाता है। इंसान के सीखने, अनुभव बनाने और यादों को संजोने के पीछे यही प्रक्रिया होती है।

न्यूरोप्लास्टिसिटी को कैसे बढ़ाई जा सकती है ?

माइंड वान्डरिंग यानी मन के भटकने से स्ट्रेस बढ़ता है। जिससे बार-बार एक ही चीज़ के बारे में सोचकर चिंता करना हानिकारक होता है क्योंकि इससे कॉर्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। यह हार्मोन दिमाग़ के लिए हानिकारक होता है और न्यूरोप्लास्टिसिटी के लिए बाधा पैदा करता है। इससे बचने का तरीक़ा है- माइंडफ़ुलनेस यानी सचेत रहना। माइंडफ़ुलनेस का सीधा मतलब है – अपने आसपास के माहौल, अपने विचारों और अपने सेंसरी अंगों (आंख, कान, नाक, मुंह, त्वचा) को लेकर सचेत रहना। यानी बिना ज़्यादा मनन किए इस पर ध्यान देना कि उस समय आप क्या महसूस कर रहे हैं।

बाहर से क्या जानकारियां दिमाग़ में जा रही हैं और अंदर मौजूद जानकारियों का कैसे इस्तेमाल हो रहा है। आसान भाषा में कहें तो यह अपने सेंसरी ऑर्गन पर फ़ोकस करने की प्रक्रिया है। अपनी सांस पर ध्यान देना या यह महूसस करना कि मौसम गर्म है या ठंडा, क्या मैं ठीक से सुन पा रहा हूं, क्या आसपास कोई सुगंध है । इससे भी न्यूरल कनेक्शन बनते हैं। आप देखेंगे कि अगर कोई इंसान दिन में 15 मिनट ही इन सेंसरी अंगों पर ध्यान केंद्रित करे तो उसका चलना-फिरना, बोलना, हंसना, मुस्कुराना, सब बदल जाएगा । न्यूरोप्लास्टिसिटी की प्रक्रिया के दौरान दिमाग़ की संरचना में भी बदलाव आता है।

ब्रेन के राइट अमिगडला का आकार कम हुआ है। ऐसा स्ट्रेस में कमी आने से होता है। जिन लोगों में एंग्ज़ाइटी और तनाव होता है, उनमें यह बढ़ा होता है। माइंडफुलेस ट्रेनिंग से इसका आकार कम हुआ। साथ ही दिमाग़ के पिछले हिस्से में भी बदलाव आया है । इसका मतलब है कि दिमाग़ में भटकाव में कमी आई है।

दिमाग की एक्सरसाइज भी है मददगार

दिमाग़ में न्यूरोप्लास्टिसिटी बढ़ाने के लिए कसरत का भी अहम योगदान हो सकता है। ‘सेंट्रो न्यूरोलेसी’ संस्थान के मुताबिक अगर दिन में 30 मिनट एक्सराइज़ की जाए और एक सप्ताह में चार से पांच दिन किया जाए तो दिमाग़ पर इसका अच्छा असर पड़ता है। मस्तिष्क में होने वाली गतिविधियों और बदलावों का शारीरिक हरकतों से गहरा संबंध है।

अगर किसी को बोलने में दिक्कत है तो उसे हाथों से इशारे करते हुए बोलते समय सुविधा हो सकती है। दरअसल, हमारे दिमाग़ का जो हिस्सा बोलने में मदद करता है, वह मोटर डेक्स्टेरिटी यानी हाथों, पैरों या बांहों की मदद से काम करने में मदद करने वाले हिस्से से जुड़ा हुआ है। शायद ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भाषा का विकास इशारों से हुआ है। स्कूल ऑफ साइकोलॉजी, बर्कबैक, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में डॉक्टर ओरी ऑसमी बताते हैं कि मेडिटेशन के अलावा शारीरिक कसरत से भी स्ट्रेस कम होता है।

हमारा दिमाग़ हर समय ख़ुद में बदलाव ला रहा होता है। लेकिन बच्चों में यह प्रक्रिया तेज़ी से हो रही होती है। जो शिशु हाथ-पैर सामान्य स्तर पर हिलाते हैं, वे बाद में अच्छे से बोल सकते हैं। लेकिन जो ऐसा नहीं करते, उनमें से कुछ को बाद में बोलने या सामाजिक व्यवहार में दिक्कत हो सकती है। व्यायाम ही नहीं, म्यूज़िक या भाषा सीखने जैसा कोई भी नया काम करने से न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ाया जा सकता है क्योंकि जब हम कुछ नया देखते, सीखते या सोचते हैं तो दिमाग़ में नए न्यूरल कनेक्शन बनते हैं।

सीखने की प्रक्रिया भविष्य में होगी आसान

इंसान का दिमाग़ आजीवन न्यूरल कनेक्शन बना सकता है। आप 80 साल की उम्र में भी नई भाषा सीख सकते हैं। नई जगह जाने, एक रूटीन तोड़ने और कुछ भी नया करने से बहुत फ़ायदा होता है। बस हमें उसे नए अनुभव देते रहना है। अभी तक यही माना जाता था कि न्यूरोप्लास्टिसिटी बच्चों में अधिक होती है। लेकिन अब दुनिया भर में वयस्कों में भी इसे दिमाग़ को एक्टिव रखने और उसे पहुंचे नुक़सान को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है । हर व्यक्ति के मस्तिष्क का सीखने का भी अपना रिदम (लय) होता है। हर व्यक्ति का दिमाग़ अपनी लय में काम करता है। अगर उस व्यक्ति को उसके दिमाग़ के रिदम से सूचनाएं दी जाएं तो वह तेज़ी से सीख सकता है।

ऐसी स्थितियों के उदाहरण जहां आपका मस्तिष्क न्यूरोप्लास्टिसिटी प्रदर्शित करता है, उनमें एक नई भाषा सीखना, संगीत का अभ्यास करना, या अपने शहर के चारों ओर नेविगेट करने का तरीका याद रखना शामिल है। यह तब भी हो सकता है जब आप सुनने या देखने जैसी इंद्रिय खो देते हैं।

_Advertisement_
_Advertisement_

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

इन्हें भी पढ़े