November 6, 2024

जानिए कश्मीर और आतंकवाद से जुड़ी फिल्म ‘आर्टिकल 370’ की रिव्यु …

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Article 370 review : कश्मीर और आतंकवाद पर बनी कहानी में लोगों का रुझान नजर आ रहा है। ऐसे में जब निर्देशक आदित्य सुहास जांभले ने देश और कश्मीर से जुड़े ऐतिहासिक फैसले पर फिल्म ‘आर्टिकल 370’ को बनाया हैं, तो ऐसे में सवाल उठना वाजिब हो जाता है कि सत्य घटना पर आधारित होने का दावा करने वाली यह फिल्म कितनी विश्वसनीय होगी? यह फिल्म देखने से पता चलेगा कि कितनी दमदार फिल्म हो सकती है सिनेमाई लिबर्टी, इस पूरे घटनाक्रम में कलाकारों का दमदार परफॉर्मेंस इसे दर्शनीय बना ले जाता है। ‘आर्टिकल 370’ एक सार्थक फिल्म साबित हुई है, जो दर्शकों को बांधे रखने और निवेशित रखने के लिए पर्याप्त सामग्री प्रदान करती है। 2019 में पुलवामा आतंकी हमला हुआ, जिसके बाद केंद्र सरकार हरकत में आई और जम्मू कश्मीर के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने का फैसला लिया।

क्या है कहानी आर्टिकल 370 की ?

फिल्म की कहानी ‘आर्टिकल 370’ को निरस्त करने के आस पास ही घुमती है, इसके शुरुवात में इंटेलिजेंट ऑफिसर जूनी हक्सर (यामी गौतम) के खुफिया मिशन से। जूनी अपने सीनियर खावर (अर्जुन राज) की परमिशन के बगैर कमांडर बुरहान वानी का एनकाउंटर कर देती है। उसके बाद कश्मीर में हिंसा और अस्थिरता फैल जाती है। साथ ही इस बवाल का पूरा जिम्मा जूनी के सिर पर डाल दिया जाता है और उसे कश्मीर और उसकी स्पेशल इंटेलिजेंस की ड्यूटी से हटाकर दिल्ली में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

 आर्टिकल 370


राजधानी दिल्‍ली में सरकार गोपनीय ढंग से ‘आर्टिकल 370’ को निरस्त करने की रणनीति बना रही होती है, जिसमें पीएमओ सचिव राजेश्वरी स्वामीनाथन (प्रिया मणि) ने गहन रिसर्च की है। राजेश्वरी कश्मीर के हालात से वाकिफ होती हैं और उसे जूनी की काबिलियत का भी अंदाजा है। ऐसे में वो जूनी को अपनी स्पेशल टीम गठित कर कश्मीर में एनआईए के तहत स्पेशल ऑपरेशन के लिए नियुक्त करती है। एक ओर जहां दिल्ली में आर्टिकल 370 को निरस्त करने की पॉलिटिकल तैयारी वहीं दूसरी तरफ कश्मीर में भ्रष्ट नेता और अलगाववादियों का सामना कर घाटी में अमन कायम करने की मुहिम पर कहानी आगे बढ़ती है। फिल्म का क्लाइमैक्स अनुच्छेद 370 को शांतिपूर्ण ढंग से निरस्त करने की नोट पर खत्म होता है।

आर्टिकल 370 मूवी के रिव्‍यू

निर्देशक आदित्य सुहास जांभले पहले सीन से ही फिल्म का मिजाज सेट कर देते हैं। थ्रिलर अंदाज में बुना गया बुरहान का एनकाउंटर सीन दर्शकों में उत्सुकता पैदा करता है कि आगे क्या होगा? फिल्म का पहला भाग काफी तनाव से भरा है, जो कथानक को रोचक बनाता है, मगर सेकंड हाफ कहानी ढीली पड़ जाती है। जब आर्टिकल 370 को निरस्त करने के दांव-पेंच में निर्देशक सिनेमैटिक लिबर्टी लेते हुए दिखते हैं। इस अनुच्छेद से जुड़े दस्तावेजों को जिस तरह से खोजा गया है, वह विश्वसनीयता पर सवाल पैदा करता है।

कलाकारों का अभिनय फिल्म की सबसे मजबूत साबित होती है, जिसमें यामी गौतम अपने अभिनय की सशक्त आभा के साथ छा जाती हैं। नो मेकअप लुक और किरदार के अंदर का गुस्सा उनकी परफॉर्मेंस को खास बनाता है। प्रियामणि जैसी साउथ की होनहार अभिनेत्री ने एक्टिंग के मामले में यामी से कहीं भी कम साबित नहीं होतीं। पर्दे पर दो मजबूत पात्रों में अभिनेत्रियों को केंद्र में देखना भला लगता है। इंटेलिजेंस अफसर यश चौहान की भूमिका में वैभव तत्ववादी, कश्मीरी नेता के रोल में राज जुत्शी, खावर के किरदार में राज अर्जुन, कश्मीरी नेता दिव्या के रूप में दिव्या सेठ की भूमिकाएं बेहद दमदार हैं। अमित शाह बने किरण कर्माकर अपने अभिनय के खास अंदाज से मनोरंजन करते हैं, जबकि पीएम बने अरुण गोविल ने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है।

क्यों देखें- परफॉर्मेंस और पॉलिटिकल फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।

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