January 19, 2025

अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की मूर्ति में हुए है बदलाव, जानिए क्या है खासियत नई मूर्ति की?….

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड के आदेश पर अब अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव किए गए हैं। बता दे कि ये बदलाव स्पष्ट रूप से बड़े संदेश दे रहे हैं। पहले न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब इस पट्टी को खोल दिया गया है, जिससे आम लोगों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में स्थापित इस नई मूर्ति को मशहूर शिल्पकार विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने तराशा है।

कितना वक्त लगा इस मूर्ति को बनाने में ?

न्याय की देवी की मूर्ति को मशहूर मूर्तिकार विनोद गोस्वामी ने तराशा है, इस मूर्ति को बनाने में तीन महीने लगे और इसे तीन चरण में पूरा किया गया। सबसे पहले एक ड्राइंग बनाई गई, फिर एक छोटी मूर्ति का रूप दिया गया। फिर इस मूर्ति को चीफ जस्टिस को दिखाया गया । जब यह मूर्ति उन्हें पसंद आई, उसके बाद में 6 फीट ऊंची एक बड़ी मूर्ति के रूप में तराशा गया। इस मूर्ति का वजन सवा सौ किलो है। मूर्तिकार विनोद गोस्वामी ने बताया, ‘चीफ जस्टिस के मार्गदर्शन और दिशा निर्देश के अनुसार ही न्याय की नई मूर्ति बनाई गई है।’


तलवार की जगह लिया संविधान ने

पहले न्याय की देवी की मूर्ति के बाएं हाथ में तलवार रहा करती थी, जिसे हटाकर अब तलवार की जगह संविधान को रखा गया है, जिससे माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि हर आरोपी के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी। अदालत में लगी न्याय की देवी की मूर्ति ब्रिटिश काल से ही चलन में रही है, लेकिन अब इसमें बदलाव करके न्यायपालिका की छवि में समय के अनुरूप बदलाव की पहल की गई है।

समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करना है उद्देश्य

चीफ जस्टिस की न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को बदलकर उसमें भारतीयता का रंग घोलने की यह पहल में शुरुवात की गयी हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है। न्याय की मूर्ति में किए गए इन बदलावों के जरिए वह संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करना चाहते हैं। इन बदलावों का चौतरफा स्वागत किया जा रहा है।

किस चीज से बनाई गई है मूर्ति?

‘चीफ जस्टिस ने कहा था कि नई प्रतिमा कुछ ऐसी हो जो हमारे देश की धरोहर, संविधान और प्रतीक से जुड़ी हुई हो।’ गोस्वामी ने बताया कि इसी सोच के साथ मूर्ति को गाउन की जगह साड़ी पहनाई गई है। यह दर्शाता है कि न्याय का भारतीयकरण हो रहा है और इसे आम लोगों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। इस नई मूर्ति को फाइबर ग्लास से बनाई गई है, जो इसे मजबूत और टिकाऊ बनाता है।

कौन है मशहूर मूर्तिकार विनोद गोस्वामी?

विनोद गोस्वामी एक मशहूर और जाने-माने चित्रकार हैं। वह दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रोफेसर हैं। वह राजस्थानी और ब्रज शैली के मेल से बने भित्ति चित्रों के लिए मशहूर हैं। विनोद गोस्वामी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। उनका जन्म नंदगांव, मथुरा में हुआ। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई राजस्थान के एक कस्बे से की। इसके बाद उन्होंने जयपुर के राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स से ग्रेजुएशन किया। फिर उन्होंने दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट्स से मास्टर डिग्री हासिल की। 1997 में उन्होंने जयपुर में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में वह दिल्ली आ गए। यहां उनकी मुलाकात सुरेंद्र पाल से हुई, जो उनके गुरु बने। विनोद गोस्वामी ने सुरेंद्र पाल से पेंटिंग की बारीकियां सीखीं। विनोद गोस्वामी रेखाचित्र, भित्तिचित्र, मूर्तिकला और पेंटिंग में माहिर हैं। उनकी कला में राजस्थानी और ब्रज परंपराओं का सुंदर मेल दिखता है।

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