शरद पूर्णिमा : जानिए शरद पूर्णिमा को मनाने का क्या है वैज्ञानिक और धार्मिक महत्त्व…
रायपुर। शरद पूर्णिमा साल की सबसे उजली और पावन रात – शरद पूर्णिमा – जब आसमान में पूर्ण चाँद अपनी पूरी कलाओं के साथ दमकता है, और माना जाता है कि उसकी चाँदनी अमृत बरसाती है। यह दिन सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक महत्त्व से भरा हुआ पर्व है।
क्या है धार्मिक महत्त्व ?
शास्त्रों में वर्णित है कि इस रात माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, और जो व्यक्ति इस रात जागरण, पूजा और भक्ति करता है, उसे माँ लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसीलिए इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है, जिसका अर्थ है — “कौन जाग रहा है?”
कहा जाता है, जो इस रात भक्ति में जागे, माँ लक्ष्मी उसी के घर ठहरती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने भी इसी रात ब्रज की गोपियों के साथ महारास किया था। इसलिए यह दिन प्रेम, भक्ति और आनंद का पर्व भी माना जाता है।

वैज्ञानिक और प्राकृतिक महत्त्व
शरद पूर्णिमा की रात का चाँद अपनी किरणों के साथ औषधीय गुणों को भी धरती पर बरसाता है। परंपरा है कि इस रात लोग खीर या दूध को चाँदनी में रखकर अगली सुबह सेवन करते हैं — यह शरीर को ऊर्जा, शीतलता और रोगों से रक्षा प्रदान करता है। यह समय मौसम के परिवर्तन का भी प्रतीक है — जब प्रकृति बरसात से सर्दी की ओर बढ़ती है।
इस दिन यह किए जाने चाहिए
- माँ लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा।
- घरों और मंदिरों में दीप प्रज्वलित करना।
- रातभर जागरण और भजन-कीर्तन।
- खीर को चाँदनी में रखकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करना।
- दान-पुण्य और सेवा कार्य करना।
शरद पूर्णिमा हमें सिखाती है कि जीवन में प्रकाश, पवित्रता और संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।
जैसे चाँद अपनी पूर्णता में सुंदर दिखता है, वैसे ही जब मन शुद्ध और शांत हो, तो जीवन भी दिव्य हो जाता है।
