April 30, 2025

Foundation course day-10 – सेल्फ डायरेक्टेड लर्निंग, सहयोगात्मक अध्ययन व रोगी देखभाल में दस्तावेज़ीकरण के महत्व को विस्तारपूर्वक समझाया गया फाउंडेशन कोर्स के 10 वें दिन…

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नवा रायपुर। श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च में चल रहे, लगातार 10 वें दिन सेल्फ डायरेक्टेड लर्निंग के तरीके, जिससे आने वाले समय में टेक्नोलॉजी के उपयोग के साथ अपने कार्य और समय की बचत के साथ उपयोगिता को मेडिकल काउंसिल के मेम्बर ने विस्तार से समझाया ।

लक्ष्य को निर्धारित करके संसाधनों का उपयोग कैसे करे ?

स्व-निर्देशित अध्ययन का पहला कदम स्पष्ट लक्ष्यों का निर्धारण करना है। विद्यार्थी को यह तय करना चाहिए कि उसे क्या सीखना है और किस स्तर तक पहुँचना है। SMART (Specific, Measurable, Achievable, Relevant, Time-bound) लक्ष्यों का उपयोग करना फायदेमंद होता है। विद्यार्थियों को उन संसाधनों का चयन करना चाहिए जो उनके लक्ष्यों के अनुरूप हों। यह किताबें, ऑनलाइन कोर्स, वीडियो ट्यूटोरियल या शैक्षिक वेबसाइट हो सकते हैं। सही संसाधनों का चयन अध्ययन को अधिक प्रभावी बनाता है। एक ठोस अध्ययन योजना बनाना महत्वपूर्ण है। इसमें समय, अध्ययन का विषय, और समीक्षा का समय शामिल होना चाहिए। योजना बनाते समय नियमितता और अनुशासन बनाए रखना आवश्यक है।


स्वयं मूल्यांकन से विद्यार्थियों को अपनी प्रगति का आकलन करने में मदद मिलती है। क्विज़, मॉक परीक्षण या जर्नल लेखन के माध्यम से वे अपनी समझ और ज्ञान की गहराई को समझ सकते हैं। अध्ययन के बाद अपनी सीख पर विचार करना महत्वपूर्ण है। यह जानने में मदद करता है कि कौन सी तकनीकें प्रभावी रहीं और कहाँ सुधार की आवश्यकता है। छात्र अपने अनुभवों को जर्नल में लिख सकते हैं। स्व-निर्देशित अध्ययन में अन्य लोगों के साथ संवाद करना और चर्चा करना फायदेमंद होता है। ऑनलाइन फोरम, अध्ययन समूह या शैक्षिक समुदायों में भाग लेकर ज्ञान का आदान-प्रदान किया जा सकता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और एप्स का उपयोग करके छात्र अपने अध्ययन को और अधिक आकर्षक और सुविधाजनक बना सकते हैं। तकनीक की मदद से वे अपनी गति से सीख सकते हैं।

सहयोगात्मक अध्ययन की पद्धति के लिए कौशल विकसित कैसे करे ?

सहयोगात्मक अध्ययन एक शिक्षण पद्धति है जिसमें छात्र एक समूह में मिलकर एक-दूसरे के साथ सीखते हैं। इस पद्धति का उद्देश्य सामूहिक रूप से ज्ञान का निर्माण करना, कौशल विकसित करना और सामाजिक अंतःक्रियाओं को प्रोत्साहित करना है। छात्र एक साथ मिलकर समस्याओं का समाधान करते हैं, परियोजनाओं पर काम करते हैं और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। इस प्रक्रिया में छात्रों के बीच खुला संवाद होता है, जिससे विचारों और दृष्टिकोणों का आदान-प्रदान होता है। समूह के प्रत्येक सदस्य को विशेष भूमिका और जिम्मेदारी दी जाती है, जिससे सभी की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होती है। विभिन्न पृष्ठभूमियों और क्षमताओं के छात्र एक साथ आते हैं, जिससे विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश होता है। सहयोगात्मक अध्ययन से छात्रों के संचार कौशल, टीमवर्क और नेतृत्व क्षमताएँ विकसित होती हैं।

समूह में काम करने से छात्र विभिन्न तरीकों से समस्याओं का समाधान खोजने में सक्षम होते हैं। जिससे विचारों का आदान-प्रदान करने से छात्रों को विषय की गहरी समझ प्राप्त होती है और वे विभिन्न दृष्टिकोणों से सीखते हैं। समूह में कार्य करने से छात्रों को एक-दूसरे से प्रेरणा मिलती है, जिससे उनकी पढ़ाई में रुचि बनी रहती है। जब छात्र अपने विचारों और योगदान को साझा करते हैं, तो इससे उनका आत्म-विश्वास बढ़ता है। छात्रों को छोटे समूहों में विभाजित करें और उन्हें एक प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कहें। कक्षा में विषयों पर चर्चा करने के लिए समय निर्धारित करें, जहाँ सभी छात्र अपनी राय साझा कर सकें। छात्र एक-दूसरे को सिखाने का अवसर दें, जिससे वे एक-दूसरे की समझ को बढ़ा सकें। ऐसे खेल या गतिविधियाँ आयोजित करें जो समूह में सहयोग को बढ़ावा दें।

रोगी देखभाल में दस्तावेज़ीकरण का क्या महत्व है ?

रोगी देखभाल में दस्तावेज़ीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो स्वास्थ्य सेवा में कई पहलुओं को प्रभावित करती है। दस्तावेज़ीकरण से रोगी के स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी सटीक और संरक्षित रहती है। यह गलतियों को कम करता है और उपचार में सुधार लाता है। दस्तावेज़ीकरण से स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को रोगी की स्थिति और उपचार के प्रभाव का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है। यह डेटा प्रबंधन में सहायक होता है। यह विभिन्न स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच संवाद को आसान बनाता है। सभी टीम के सदस्यों को एक ही जानकारी उपलब्ध होती है। सही तरीके से दस्तावेज़ीकरण करने से स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कानूनी सुरक्षा मिलती है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी प्रक्रियाएँ रिकॉर्ड की गई हैं।दस्तावेज़ीकरण का उपयोग चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में भी किया जा सकता है, जिससे नई जानकारियाँ और विधियाँ विकसित हो सकें।

उचित दस्तावेज़ीकरण के तरीके

दस्तावेज़ में सभी जानकारी सही और स्पष्ट होनी चाहिए। किसी भी जानकारी में गलतियाँ नहीं होनी चाहिए। सभी संबंधित जानकारी को शामिल करें, जैसे कि रोगी की चिकित्सा इतिहास, वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति, उपचार और दवाएँ इन सब का उचित प्रबंधन कैसे करे ? दस्तावेज़ को समय पर अपडेट करें। जैसे ही नई जानकारी या उपचार किया जाए, उसे तुरंत दर्ज करें। दस्तावेज़ को एक व्यवस्थित तरीके से लिखें ताकि इसे पढ़ना और समझना आसान हो। उपशीर्षक और बुलेट पॉइंट का उपयोग करें। रोगी की जानकारी को गोपनीय रखें। दस्तावेज़ को केवल उन व्यक्तियों के साथ साझा करें जिन्हें इसकी आवश्यकता हो। सभी दस्तावेज़ों पर सही तरीके से हस्ताक्षर करें और तिथि डालें ताकि यह स्पष्ट हो कि जानकारी कब दर्ज की गई थी। तकनीकी शब्दावली का उपयोग करें, लेकिन सुनिश्चित करें कि यह स्पष्ट और समझने योग्य हो। संबंधित स्वास्थ्य संगठन या संस्थान द्वारा निर्धारित दस्तावेज़ीकरण के नियमों का पालन करें।

इन तरीकों का पालन करके, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता रोगी देखभाल में दस्तावेज़ीकरण को अधिक प्रभावी और सुरक्षित बना सकते हैं। इससे न केवल रोगी की देखभाल में सुधार होता है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की गुणवत्ता भी बढ़ती है। इस दिन के अंत में अलग-अलग खेलों, जैसे कैरम, चेस व बैडमिंटन के उत्साहपूर्वक आयोजन के साथ इस दिन का समापन किया गया ।

डीन डॉ कुंदन गेडाम एसआरआई एसएमआर व कार्यकारी निदेशक एस एस बजाज ने 10 वें दिन के सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएं दी।

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