जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है रथों का निर्माण…
ओडीसा। पुरी में जगन्नाथ की रथ यात्रा 7 जुलाई से निकाली जाएगी। इस रथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण अक्षय तृतीया के दिन से शुरू हो जाता है। बता दें कि इस दिन रथ यात्रा के लिए तीन रथ बनाने का काम शुरू हो गया है। विश्व प्रसिद्ध यात्रा के लिए हर साल तीन रथ बनाए जाते हैं, इसके लिए रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है ।
क्या है मान्यता ?
बता दें कि नयागढ़ बनखंड की देवी बड़ राउल का पूजा स्थल है। इस दौरान जगन्नाथ मंदिर में हर साल पौष महीने की छठी को मंदिर जाते हैं और यहां की देवी को भगवान जगन्नाथ की पोशाक और उनके फूल भेंट करते हैं। साथ ही देवी से लकड़ी काटने की अनुमति ली जाती है। इस दौरान विशेष पूजा की जाती है। इसके बाद दो-तीन घंटे भजन कीर्तन किए जाते हैं। अगर पूजा में कोई विघ्न नहीं आता, तो ऐसा माना जाता है कि लकड़ी काटने के लिए मां की अनुमति मिल गई है। इन जंगलों की रखवाली 100 साल से ज्यादा सालों से माली प्रजाति के लोग करते आ रहे हैं।
गलतियों पर मांगते है माफी
पेड़ के सामने परिवार के सभी लोग माथा टेकते हैं और उन्हें काटने की माफी मांगते हैं। साथ ही पूर्वजों ने जो हजारों सालों से इनकी रखवाली की है। इसलिए यात्रा के बाद तीनों रथों की लकड़ी पुरी में भगवान की रसोई में रखी जाती है। इन्हें ही जलाकर सालभर भगवान के महाप्रसाद बनाने में इनका उपयोग किया जाता है।
865 लकड़ी के टुकड़ों से बनाते हैं रथ
भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के लिए हर साल अलग-अलग तीन रथ बनाए जाते हैं। और इन्हें बनाने के लिए कुल 865 लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस बार 812 लकड़ी के टुकड़ों का ही इस्तेमाल किया जाएगा। बताया जा रहा है कि पिछले साल 53 टुकड़े बच गए थे। रथ बनाने के लिए करीब 200 टुकड़े मंदिर पंहुचाये गये हैं।
अक्षय तृतीया को ओडिशा के लोगों के लिए शुभ त्योहारों में से एक माना जाता है क्योंकि प्रसिद्ध पुरी रथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण इसी दिन से शुरू होता है। इसके अलावा, पवित्र शहर पुरी में भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की 21 दिवसीय चंदन यात्रा आज हिंदू त्योहार के अवसर पर शुरू होगी।
गंधलेपना यात्रा त्यौहार की करते है शुरुवात
चंदन यात्रा को ‘गंधलेपना यात्रा’ के नाम से भी जाना जाता है, यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे लंबा त्योहार है। चंदन यात्रा के दौरान, जगन्नाथ मंदिर के मुख्य देवताओं की प्रतिनिधि मूर्तियों के साथ-साथ पांच ‘शिवलिंग’ जिन्हें ‘पंच पांडव’ के नाम से जाना जाता है, को पुरी के जगन्नाथ मंदिर के ‘सिंहद्वार’ से नरेंद्र तक एक औपचारिक जुलूस में ले जाया जाता है। तीर्थ तालाब अनुष्ठानों के बाद, देवताओं को जगन्नाथ मंदिर के पास स्थित नरेंद्र तालाब में ले जाया जाता है और शाम को तालाब की सैर के लिए भव्य रूप से सजाई गई नावों पर रखा जाता है।
पवित्र त्रिमूर्ति के लिए रथों के निर्माण की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए, मंदिर के सेवक रथ खाला में एक विशेष अनुष्ठान करेंगे और उनकी आज्ञा मांगते हुए अंग्या माला लाएंगे और उसे लकड़ियों के तीन टुकड़ों पर रखेंगे। विशेष रूप से, तीन विशाल रथों को बनाने में लगभग 100 बढ़ई लगे होंगे, भगवान जगन्नाथ के लिए 45 फीट ऊंचे नंदीघोष, भगवान बलभद्र के लिए 44 फीट ऊंचे तालध्वज और देवी सुभद्रा के लिए 43 फीट ऊंचे देबदलन।