December 8, 2024

चंद्रयान-3 मिशन का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर एक लोकेशन मार्कर के रूप में जारी रखा है अपना काम..

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चंद्रयान-3 मिशन : इस मिशन के विक्रम लैंडर  ने भारत को फ‍िर से गर्व करने का मौका दिया है। इसरो का चंद्रयान-3 मिशन पिछले साल चंद्रमा पर उतरा था। करीब 15 दिनों तक विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने चांद पर अपने प्रयोग पूरे किए। हालांकि एक बार स्‍लीप मोड में जाने के बाद विक्रम और प्रज्ञान दोबारा काम नहीं कर पाए। बता दे कि चंद्रयान-3 लैंडर के एक इंस्‍ट्रुमेंट ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लोकेशन मार्कर के रूप में काम करना शुरू कर दिया है।

लूनर ऑर्बिटर लेजर अल्टीमीटर का किया इस्तेमाल

चंद्रयान-3 लैंडर पर लगे लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे(एलआरए) ने काम करना शुरू कर दिया है। अमेरिकी स्‍पेस एजेंसी नासा के लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) ने 12 दिसंबर 2023 को परावर्तित संकेतों का सफलतापूर्वक पता लगाकर लेजर रेंज की माप को हासिल किया। एलआरओ पर लूनर ऑर्बिटर लेजर अल्टीमीटर (लोला) का इस्तेमाल किया गया। जब यह ऑब्‍जर्वेशन हुआ, तब चंद्रमा पर रात हो रही थी और एलआरओ चंद्रयान-3 के ईस्‍ट में आगे बढ़ रहा था।


एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तहत नासा के एलआरए को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर पर एडजस्‍ट किया गया था। 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरा चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर तभी से ‘लोला’ से संपर्क में है। कि ‘चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर एक लोकेशन मार्कर के रूप में अपना काम करना जारी रखेगा। इससे मौजूदा और भविष्‍य के मून मिशनों को मदद मिलेगी। विक्रम लैंडर के लोकेशन मार्कर के रूप में काम करने से स्‍पेसक्राफ्ट की ऑर्बिटल सिचुएशन का सटीक पता लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही चंद्रमा के स्‍ट्रक्‍चर और गुरुत्वाकर्षण से जुड़ी गड़बड़‍ियों का भी पता लगाया जा सकेगा।

रिवर्स तकनीक के बताये लाभ

साथ ही चांद पर ‘रिवर्स तकनीक’ का उपयोग करने के कई लाभ बताये हैं। उदाहरण के लिए चांद के ऑर्बिट में घूम रहे किसी स्‍पेसक्राफ्ट से लेजर तरंगे भेजकर टार्गेट की सटीक लोकेशन का पता लगाया जा सकता है। इससे वहां लैंड करने वाले लैंडर को मदद मिल सकती है।
नासा के LRO ने 12 दिसंबर को विक्रम लैंडर की ओर लेजर तरंगें भेजीं। तब विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मंजिनस क्रेटर के पास LRO स्‍पेसक्राफ्ट से 100 किलोमीटर दूर था। प्रयोग को तब कामयाबी मिली, जब विक्रम लैंडर के रेट्रोरिफ्लेक्टर से लेजर लाइट वापस लौटकर आई। इससे नासा को पता चला कि उनकी तकनीक काम कर गई है।

चंद्रमा के ध्रुवीय इलाकों में बर्फ के बड़े भंडार हो सकते हैं। स्‍पेस एजेंसियां चांद पर स्‍थायी बेस बनाना चाहती हैं, ताकि वहां से फ्यूचर मिशन्‍स को अंजाम दिया जा सके। चंद्रयान-3 उस दिशा में नई संभावनाएं ला सकता है।

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