December 8, 2024

महाराष्ट्र के मिराज में निर्मित होने वाले वाद्य यंत्र सितार और तानपुरा को मिला जीआई टैग…

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महाराष्ट्र। वाद्य यंत्र बनाने के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र का एक छोटा क़स्बा है मिरज जहां पर सितार और तानपुरा जैसे वाद्य यंत्रो को बनाया जाता है । जिसके लिए उन्हें भौगोलिक संकेतक अर्थात् जीआई टैग मिला है। यह क्षेत्र सांगली जिले में आता है। निर्माताओं ने बताया कि ये वाद्ययंत्र मिरज में बनाए जाते हैं। जिसकी शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को जितनी मांग है उतनी ही फिल्म उद्योग से जुड़े कलाकारों के बीच इनकी भारी मांग है।

300 साल से भी पुरानी परंपरा

मिरज में सितार और तानपुरा बनाने की परंपरा 300 साल से भी अधिक पुरानी है। सात पीढ़ियों से अधिक समय से कारीगर इन तार आधारित वाद्य यंत्रों को बनाने का कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से भौतिक संपदा कार्यालय ने 30 मार्च को मिराज म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स क्लस्टर को सितार के लिए और सोलट्यून म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट प्रोड्यूसर फर्म को तानपुरा के लिए जीआई टैग दिया।


जीआई टैग क्या है ?

इसका पूरा नाम Geographical Indication Tag होता है। जीआई टैग मिलने के बाद कोई भी वस्तु उस क्षेत्र या राज्य के लिए विशेष हो जाती है। जिस राज्य या क्षेत्र में वह निर्मित किये जाते हो। भारत में जीआई टैग की शुरुआत साल 2003 में हुई थी। जीआई टैग किसी वस्तु की विशेषता और उसकी दुर्लभ गुण को अच्छी तरह से जांचने परखने के बाद दिए जाने का प्रावधान है जो उसकी विशेषता के आधार पर लागू होगा. लेकिन एक वस्तु को केवल एक ही जगह पर जीआई टैग दिया जा सकता है. एक ही वस्तु को अलग-अलग राज्यों में भी जीआई टैग दिया जा सकता है ।

किसे मिलता है जीआई टैग ?

देश के कई हिस्सों में मिरज निर्मित होने का दावा कर वाद्ययंत्र बेचे जाते हैं। इसके लिए 2021 में आवेदन किया गया था। एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में निर्मित उत्पाद को जीआई टैग मिलता है। इससे उत्पाद का व्यावसायिक मूल्य बढ़ जाता है। जिसे वाणिज्य मंत्रालय विभाग के इंडस्‍ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड के द्वारा अच्छी तरह से जांच परख करने के बाद में टैग दिया जाता है. मोहसिन मिरजकर के अनुसार, मिरज में निर्मित होने वाले सितार और तानपुरा के लिए कर्नाटक के जंगलों से लकड़ी खरीदी जाती है। जबकि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मंगलवेधा क्षेत्र से कद्दू खरीदी जाती है। उन्होंने कहा कि एक माह में 60 से 70 सितार और लगभग 100 तानपुरा बनाये जा सकते हैं।

450 से अधिक कारीगर करते हैं निर्माण

मिराज म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स क्लस्टर के अध्यक्ष मोहसिन मिरजकर ने कहा कि यह शहर में सितार और तानपुरा निर्माताओं दोनों के लिए शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करता है। उन्होंने बताया कि संस्था में 450 से अधिक कारीगर सितार और तानपुरा सहित संगीत वाद्य यंत्रों के निर्माण करते हैं। उन्होंने बताया कि मिरज में बने सितार और तानपुरा की बहुत अधिक मांग है, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते मांगों को पूरा नहीं किया जा सकता।

किस – किस क्षेत्र में मिलता है जीआई टैग ?

यह टैग वस्तु के दुर्लभ गुणों के आधार पर उसे विशेष पहचान दिलाने के लिए दिया जाता है। यह टैग कुछ विशेष वस्तुओं को दिया जाता है। जैसे खेती से जुड़े उत्पादों को जैसे किसी स्थान पर कोई खास तरीके की पैदावार हो रही है जिसके विशेष गुण हैं। जैसे किसी विशेष राज्य में उगने वाले फल, सब्जियां और मसाले आदि। विशेष कपड़े और हैंडीक्राफ्ट जैसे हाथ से कढ़ाई, बुनाई करके बनाई जाने वाली साड़ियां, चादर,कार्पेट आदि। इसके अलावा, किसी स्थान की विशेष खाद्य सामग्रियों को ये टैग दिया जाता है। जैसे- पेड़ा, नमकीन और लड्डू आदि. सबसे पहले ये जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग में उगने वाली चाय को दिया गया था।

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