एसआरयू में “शोध पद्धति उपकरण एवं तकनीक” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन…
SRU: श्री रावतपुरा सरकार विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान एवं मनोविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित शोध पद्धति उपकरण एवं तकनीक विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का पहला दिन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस दो दिवसीय कार्यशाला में देश के लगभग सभी राज्यों से 120 से अधिक प्रतिभागियों ने ऑनलाइन एवं ऑफलाइन भाग लिया।
उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के डीन अकादमिक प्रो. आरआरएल बिराली ने शोध एवं कार्यशाला से संबंधित विषयों का परिचय देते हुए इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान समय में विभिन्न संकायों एवं विषयों के सहयोग से किस प्रकार शोध किया जा सकता है, ताकि नए शोध एवं निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके और इसे अधिक सर्वव्यापी बनाया जा सके।
शोध के मूल्यों पर विशेष ध्यान देना है जरुरी
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रो. राजीव चौधरी ने प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में शोध के विभिन्न प्रतिमानों एवं शोधकर्ता के गुणों पर चर्चा की तथा बताया कि शोध की भूमिका एवं उसका सैद्धांतिक पक्ष क्या होना चाहिए और कैसा होना चाहिए। एक शोधकर्ता के रूप में किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। शोध को सही दिशा में सिद्ध करके उसकी उपयोगिता को बढ़ाया जा सकता है। विभिन्न विषयों के साथ शोध को और अधिक महत्वपूर्ण कैसे बनाया जा सकता है। यदि शोध प्रश्न मजबूत है, तो शोध के परिणाम भी प्रभावी साबित होंगे। साथ ही उन्होंने बताया कि शोधकर्ताओं को शोध के मूल्यों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
एआई तकनीक के माध्यम से शोध को सरल व उपयोगी बनाया जा सकता है
दूसरे सत्र के वक्ता डॉ. जी.के. देशमुख (पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय) ने साहित्य समीक्षा के विभिन्न आयामों को समझाया तथा शोध में साहित्य समीक्षा के महत्व और उपयोगिता पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने बताया कि नई तकनीक का उपयोग करके शोध को और अधिक प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है। एआई तकनीक के माध्यम से शोध को सरल तरीके से और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। मेंडली जैसे सॉफ्टवेयर का उपयोग करके शोध पत्रों और शोध को आसानी से उद्धृत किया जा सकता है। जिससे शोधकर्ता का काफी समय बचता है और शोध की उपयोगिता बढ़ जाती है। और वे कौन से तरीके हैं जिनके माध्यम से डेटा को सही तरीके से प्रोसेस किया जा सकता है ताकि परिणामों की प्रामाणिकता और बढ़ जाए।
सत्र के अंत में दो दिवसीय कार्यशाला के सह-पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. नरेश गौतम ने आभार व्यक्त करते हुए शोध के विभिन्न पहलुओं को समझाया तथा बताया कि किस प्रकार आधुनिकता एवं उत्तर आधुनिकता के दौर में वैकल्पिक शोध सिद्धांतों को अपनाकर नए शोध प्रतिमानों को आगे बढ़ाया जा सकता है।
इस दो दिवसीय कार्यशाला में पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. सुजाता घोष, सम्प्रीति भट्टाचार्य एवं डॉ. चित्रपांडे के साथ-साथ विश्वविद्यालय के सभी संकायों के डीन, प्राचार्य, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।