September 14, 2024

स्टैच्यू ऑफ वेलर की 84 फुट ऊँची प्रतिमा का पीएम ने किया अनावरण…

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जोरहाट। असम के जोरहाट में ‘अहोम सेनापति’ लचित बोरफुकन की 125 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया । ‘स्टैच्यू ऑफ वेलर’’ (वीरता की प्रतिमा) का अनावरण प्रधानमंत्री ने टोक के समीप होलोंगापार में लचित बोरफुकन मैदाम डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट में किया।

कौन थे लचित बोरफुकन ?

लचित बोरफुकन अहोम साम्राज्य (1228-1826) के एक महान सेनापति थे। उन्हें 1671 की ”सरायघाट की लड़ाई‘ में उनके नेतृत्व के लिए जाना जाता है जिसमें राजा रामसिंह-प्रथम के नेतृत्व में असम को वापस हासिल करने के लिए शक्तिशाली मुगल सेना के प्रयास को विफल कर दिया गया था।


कुछ समय पहले अहोम साम्राज्य के सेनापति लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती के समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विस्तार से इस महान योद्धा की वीरगाथा सुनाई थी। इतिहास की किताबों में केवल मुगलों का गुणगान हुआ। भारत के महान योद्धाओं को भुला दिया गया। दस साल से देश की सत्ता संभाल रहे पीएम  मोदी भारत के नायकों का महिमामंडन करते हुए उनका इतिहास जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं कि हमें साजिशन गुलामी का इतिहास पढ़ाया गया। इस संदर्भ में आज बात एक ऐसे ही एक महामानव लाचित बोरफुकन की, जिनकी प्रतिमा का अनावरण पीएम मोदी ने किया ।

सराईघाट की जंग

अखंड भारत में मुगलों ने देश के बड़े भूभाग पर राज किया। कई राजाओं और योद्धाओं ने मुगलों को कड़ी टक्कर दी। यही वजह है कि मुगल कुछ जगहों को कभी नहीं जीत पाए। यहां बात लाचित बोरफुकन की जिन्हें शिवाजी की तरह मुगलों को युद्ध में धूल चटाने की वजह से पूर्वोत्तर (NE) का शिवाजी भी कहा जाता है। दरअसल जिस समय भारत के कई राजा मुगलों से लोग डर कर उनसे संधि करते थे। उसी समय लाचित ने मुगलों को कई बार मात दी और उनकी रणनीति फेल कर युद्ध के मैदान में कई बार धूल चटाई। असम की राजधानी गुवाहाटी पर मुगलों का कब्जा होने के बाद ये लाचित ही थे जिन्होंने अपनी वीरता और पराक्रम से शिवाजी की तरह मुगलों को बाहर का रास्ता दिखाया था।

असम के महानायक थे लाचित

17वीं सदी की शुरुआत में मुगलों ने अपनी सीमा के विस्तार के लिए पूर्वोत्तर का रुख किया। इस दौरान उनका सामना असम के महानायक लाचित से हुआ। अहोमों का राज असम में ब्रह्मपुत्र घाटी तक फैला था। 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई सराईघाट की लड़ाई के दौरान बोरफुकन अहोम सेना के सेनानायक थे। इस युद्ध में लाचित बोरफुकन ने अपने अदम्‍य साहस के दम पर क्रूर मुगल शाषक औरंगजेब के सेनापति राम सिंह को सेना समेत असम से बाहर खदेड़ दिया था।

मातृभूमि के लिए मामा को उतार दिया मौत के घाट

देश की सुरक्षा पहले और बाकी रिश्ते नाते बाद में थे। राज्‍य की सुरक्षा के लिए बोरफुकन ने सीमाओं पर दीवार बनाने का आदेश दिया। दीवार बनाने की जिम्‍मेदारी उन्‍होंने अपने मामा को दी। तभी गुप्तचर ने खबर थी कि अगले दिन शाम को सूरज ढलने तक मुगल फौज अहोम सीमा पर पहुंच सकती है। ऐसे में सुबह से पहले दीवार बनाकर पीछे फौज खड़ी करना जरूरी था। सैनिक जी जान से जुटे थे. जब बोरफुकन मजबूत दीवार का निरीक्षण करने गए तो पता चला कि काम अधूरा था। खुद उनके मामा और उनकी देखा-देखी दीवार बना रहे सैनिकों ने भी मान लिया था कि समय से दीवार नहीं बन पाएगी। सैनिकों का मनोबल टूट गया था। अब कोई और चारा तो था नहीं था। तभी लाचित ने त्वरित फैसला लेते हुए तलवार निकाली और मामा का सिर धड़ से अलग कर दिया।

राम वनजी सुतार द्वारा बनाई गई है प्रतिमा

लचित बोरफुकन अहोम साम्राज्य (1228-1826) के एक महान सेनापति थे। उन्हें 1671 की ‘सरायघाट की लड़ाई’ में उनके नेतृत्व के लिए जाना जाता है, जिसमें राजा रामसिंह-प्रथम के नेतृत्व में असम को वापस हासिल करने के लिए शक्तिशाली मुगल सेना के प्रयास को विफल कर दिया गया था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने फरवरी 2022 में इस प्रतिमा की नींव रखी थी। राम वनजी सुतार द्वारा बनाई गई इस प्रतिमा की ऊंचाई 84 फुट है और यह 41 फुट की चौकी पर स्थापित की गई है, जिससे यह संरचना 125 फुट ऊंची हो गई।

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